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प्यार बचाना इस धरती से / शोभनाथ शुक्ल

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प्रिये
आज तुम्हारे लिए
हमारे शब्द मतंग से
मतवाले हो
जाने कहना क्या चाह रहे हैं..
’......शब्दों को पाकर
तुम मेरे दिल को
पा जाओ...........
अर्थ खोलने से पहले ही
मेरे ज़ज्बात
समझ जाओ.......
आज तुम्हारे लिए
हमारे शब्द
बहुत व्याकुल
मुझको तुम तक
पहूँचाने को
शायद ऐसा चाह रहे हैं...........।
 
अपनत्व कहाँ
खामोशी में है
फिर क्यों ऐसे
रूठ रहे हो................।
सुबह हुई फिर
फिर शाम आ गई
क्यों समय छीजता
देख रहे हो.......
तुम/कल कहाँ रहेगा आने का
गया साल
नव वर्ष आ गया
हर करवट पर
याद आ गया
साँसांे में है देह गमकती
बीते दिन
पल प्रति पल
व्याकुल हैं
तुम तक जाने को......
शब्द हमारे मचल रहे हैं...
यही बात पहुँचाने को.................।

नववर्ष
तुम्हारे लिए बने पर्याय हर्ष का
आशाओं की ज्योति जगे
पथ प्रशस्त हो उन्नति का
हर प्रकाश की किरण
झुके तेरे पग पर
इससे बढ़ कर क्या
सुखद और मेरे मन का
शब्द
हमारे कहना इतना ही
शायद चाह रहे हैं.............।
प्रिये
आज तुम्हारे लिए
हमारे शब्द मतंग से
मतवाले हो
भरी हुई हो।
यादों में तुम रमी हुई हो
महक उठी अमराई जैसी
तेरी साँसें
खुल गया गेसुओं का गुच्छा/जब
भर गया बसन्त की खूशबू से
सारा दिगन्त
तब कूक उठा मेरा मन
रह-रह कर कोयल जैसा
चल पड़ी हवा, चढ़ गया रंग
हो गया गाल गुलाल गुलाबी
बहका मन, चल पड़े कदम
तेरे दर पर/शायद
दस्तक देना चाह रहे हैं
अब की होली में
शायद/तेरी
चोली रंगना चाह रहे हैं ।
शब्द हमारे
तेरे दिल की कमल पंखुडी में
भाैंरे सा बसना चाह रहे हैं...........।
रति,क्रीड़ा में लिप्त हो गई
कामदेव की बाहों में
पतझड़ में गिरते पत्तों सा
मन में संशय बना रहा
नंगी डालों सा मेरा तन
रह-रह कर झूला झूल रहा
झोंके पछुँआ के
हाय राम। चुभते काँटों से
फिर से तुझको पाने को
बुन कर फिर से संजो रहा
कुछ-कुछ बीती बातों को........
देख-देख कर मन ललचाया
यादें भरती आहों में
शब्द/हमारे इसी भाव को
तुझ तक पहुँचाना चाह रहे हैं............
शब्द हमारे बार-बार ऐसे ही छूना
चाह रहे हैं.................।।
शब्द
हमारे शायद तुमको
याद दिलाना चाह रहे हैं..........।
टपक रही तरूओं से बूँदें
जब वर्षा में झीसी पड़ती
घन घिरी घटाएं मोर नाचते
जब कलियाँ आपस में लड़ती
गूँ गुटर गूँ दौड़ कबूतर
पंख फड़फड़ा कर कबूतरी के
करता आगे -पीछे
देख मानुष को आँख लड़ाता
फिर करता आँखें नीचे
घूम-घूम कर
घूम-घूम कर
इक दूजे को /शायद ये
प्यार जताना चाह रहे हैं.........
प्यार बचाना इस धरती से
शब्द
हमारे चाह रहे हैं..............।
प्रिये
आज तुम्हारे लिए
हमारे शब्द मतंग से
मतवाले हो
जाने कहना क्या चाह रहे हैं।