भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार लुटाऊँगा / संतोष कुमार सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने तो अब ठान लिया है, प्यार लुटाऊँगा।
आज खिला हूँ मगर पता है, कल मुरझाऊँगा।।

मधुवन में मधु बाँटा करते, नित्य पुष्प सारे।
मगर आदमी मुफ्त वेदना, बाँट रहे न्यारे।।
शूल-शूल को हटा राह से, फूल बिछाऊँगा।
मैंने तो अब ठान लिया है, प्यार लुटाऊँगा।।


हमसे ले लो प्यार, दिलों से मिटा द्वेष की खाई।
जितने हों अभिशाप मुझे सब, दे देना भाई।।
जीवन के दिन चार प्यार में, उन्हें बिताऊँगा।
मैंने तो अब ठान लिया है, प्यार लुटाऊँगा।।

मधुर तराने भरे हुए हैं, दिल की झोली में।
मधुर बनाऊँ भरा हुआ विष, जिनकी बोली में।।
कौवों को भी मधुर गीत के बोल सिखाऊँगा।
मैंने तो अब ठान लिया है, प्यार लुटाऊँगा।।

नयन-नयन भी पीड़ाओं से सिक्त नहीं होंगे।
अधर-अधर भी मुस्काहट से रिक्त नहीं होंगे।।
हृदय-हृदय में प्रेम की गंगा, नित्य बहाऊँगा।
मैंने तो अब ठान लिया है, प्यार लुटाऊँगा।।