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"प्यासा गगन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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ओक बने अधर
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सरस मन हुआ।
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थाती तुम्हारी
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प्राण मेरे विकल
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अर्पित करूँ
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भर भर अँजुरी
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मेरे प्रेम देवता।
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सृष्टि प्रेम की
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सींचती प्रतिपल
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आए प्रलय
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बूँद थी मैं तुम्हारी
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तुम्हीं में हूँ विलय।
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6
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प्रभु के आगे
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शीश जब झुकाया
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तुमको पाया।
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खड़े मेरे सामने
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अंक में आ समाए।
  
 
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10:13, 20 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


1
यह जीवन
यों स्वर्णिम हो गया
दर्द खो गया
नील नभ में कहीं
जो स्पर्श तेरा मिला।
2
प्यासा गगन
था मेरा यह मन
भटका सदा
सरस धरा तुम
सींचे सूखे अधर
3
पलकें खुलीं
झरा प्यार निर्झर
पिया जीभर
ओक बने अधर
सरस मन हुआ।
4
थाती तुम्हारी
प्राण मेरे विकल
अर्पित करूँ
भर भर अँजुरी
मेरे प्रेम देवता।
5
सृष्टि प्रेम की
सींचती प्रतिपल
आए प्रलय
बूँद थी मैं तुम्हारी
तुम्हीं में हूँ विलय।
6
प्रभु के आगे
शीश जब झुकाया
तुमको पाया।
खड़े मेरे सामने
अंक में आ समाए।