प्यास की कैसे लाए ताब[1] कोई नहीं दरिया तो हो सराब[2] कोई रात बजती थी दूर शहनाई रोया पीकर बहुत शराब कोई कौन सा ज़ख्म किसने बख्शा है उसका रखे कहाँ हिसाब कोई फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की आने वाला है फिर अज़ाब[3] कोई