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प्यास की कैसे लाए / जावेद अख़्तर

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प्‍यास की कैसे लाए ताब<ref>सामना करना का साहस</ref> कोई
नहीं दरिया तो हो सराब<ref>मरीचिका</ref> कोई

रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई

कौन सा ज़ख्‍म किसने बख्‍शा है
उसका रखे कहाँ हिसाब कोई

फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब<ref>सज़ा</ref> कोई

शब्दार्थ
<references/>