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प्रकाश-सीमाओं से चल कर आया आदमी / हुकम ठाकुर

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प्रकाश-सीमाओं से चलकर आया आदमी
आशीर्वादी मुद्रा बनाए
कल जब इतिहास लिख रहा होगा
आरामकुर्सी पर चित्त पड़ी आपसदारी
ज़रूरत अख़बार की सुर्खियाँ गुनगुना रही होगी

धुर माथे पर बजती
गर्म हवा की दनदनाहट की तफ़तीश में
गुड़ के शीरे में गिरे हुए पुरुषार्थ के ठीकरे
जब पिकनिक से लौटते
स्कूली बच्चों को मिलेंगे चौरस्ते पर
तो किसके हिस्से में कितनी धूप आई
उनको कौन बताएगा

पीढ़ियों की बुनी
रस्सी की बँट में पड़ी गाँठ को
जब पंगु हाथ खोल न पाएँगे
तो बेमियादी भोली ज़रूरत की रपट
समझौता-वार्ता
मेज़ के किस कोने पर बिठाई जाएगी
और वह किसका दखल
किसके ख़िलाफ़ मानी जाएगी

दूर पहाड़ पर
बर्फ़ की काली-पीली परतें
ताज़ा गिरी बर्फ़ की घुलती हुई शिनाख़्तें
प्यास और हक़ की पर्देदारी के दरमियान
ठिगने आदमी की लम्बी परछाईयों को
क्या जवाब देंगी
दस बिस्वा आगे की बात है

डामर की घुटी हुई मजबूत सड़क
और फैक्टरी के पत्थरीले फ़र्श के नीचे
आठ बूढ़े खुरों द्वारा चीन्ही गई इबारतें
साथ ही रोटी के खेत पर लिखे हुए दस्तावेज़
आगे जब शोध का विषय होंगे विश्वविद्यालयों में
तो पत्थर होते पिता के चेहरे
अनसुने दुधमुँहें बालक के रूदन को
ठण्डे होते सम्बन्धों के
किस कुनबे का सदस्य माना जाएगा

हाइवे पर
शीन-काफ़ से चाक-चौबन्द मायावी फिकरे
कचनार की निपत्ती टहनियों पर चटकते हुए बीज़
कलम से गिरते हुए पसीने के रहस्य
नमक की खोज में निकले हैं
अच्छी बात यह
कि जीवन की बहुत छूटी हुई चीज़ें
बची हुई के रास्ते में फच्चर नहीं फँसा रहीं
यानी कि आने वाले कल के लिए
रास्ता साफ़।