भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रजा / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 1 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कम्बल के छेदों से
हाड़ तक घुस जाने वाली
हवा के ख़िलाफ़
लपटों को तेज़ करते हुए
वह सुना रहा है
आग के आस-पास बैठे लोगों को
राम वनवास की कथा
राम थे अवतारी पुरुष
राम ने आचरण किया
सामान्य मनुष्य की तरह
राम हैं सब जगह

राम हैं हमारे-तुम्हारे भीतर
अवचेतन से बसे चरित्र की
विवेचना करते हुए
वह विस्मय भर देता है
सबकी आँखों में
गर्व से कहता है
यह तमाम बातें
कल सुनी थीं मालिक के घर
एक पहुँचे हुए सन्त के मुख से

चिंगारी की तलाश में
फूँकते हुए राख का ढेर
वह सोचता है
राम तो राजा थे
उसके मालिक भी राजा हैं
उसकी नियति तो बस
प्रजा होना है।