भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रणति / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 4 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=हरी घास पर क्षण भर /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शत्रु मेरी शान्ति के-ओ बन्धु इस अस्तित्व के उल्लास के;
ऐन्द्रजालिक चेतना के-स्तम्भ डावाँडोल दुनिया में अडिग विश्वास के;
लालसा की तप्त लालिम शिखे-
स्थिर विस्तार संयम-धवल धृति के;

द्वैत के ओ दाह-
जड़ता के जगत् में अलौकिक सन्तोष सुकृति के;
अनाचारी, सर्वद्रावी, सर्वग्रासी-
ओ नियन्ता एक अभिनव शील के, व्रती मेरे यती संगी

हृदय के जगते उजाले, निवेदित इह के निवासी!
प्रणति ले ओ नियति के प्रतिरूप-जलते तेज जीवन के;
प्रखर स्वर विद्रोह के प्रतिपुरुष सात्त्विक मुक्ति के;
मेरी प्रणति ले, स्वयम्भू आलोक मन के!
प्रणति ले!

कलकत्ता, 17 अक्टूबर, 1946