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प्रणयगंधी याद में (नवगीत) / श्याम नारायण मिश्र

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चू रहा मकरंद फूलों से,
उठ रही है गंध कूलों से ।

घाटियों में
दूर तक फैली हुई है चांदनी
बस तुम नहीं हो ।

गाँव के पीछे
पलाशों के घने वन में
गूँजते हैं बोल वंशी के रसीले
आग के
आदिम-अरुण आलोक में
नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले

कंठ में
ठहरी हुई है चिर प्रणय की रागिणी
बस तुम नहीं हो ।

किस जनम की
प्रणयगंधी याद में रोते
झर रहे हैं गंधशाली फूल महुओं के
सेज से
भुजबंध के ढीले नियंत्रण तोड़कर
जंगलों में आ गए हैं वृन्द वधुओं के

समय के गतिशील नद में
नाव-सी रुक गई है यामिनी
बस तुम नहीं हो ।