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प्रण / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

प्रण कठोर,प्रण सत्य,यही भारत का बाना
हरिश्चंद्र,दशरथ पास था धैर्य खजाना
बिके-मरे सब त्याग,आत्म-बल निज दिखलाया
व्रत निज पूरा पाल,विश्व में यश फैलाया

प्रण 'मुकुंद' नर-श्रेष्ठ प्रण,प्रण पाटा सम्मान है
प्रण प्रपंच से रहित है,यह भारत की शान है

गांधी का प्रण पूर्ण,हिन्द आजाद हुआ है
सभी तरह से देश, आज आबाद हुआ है
गांधी खुद मिट गए,न प्रण उनका मिट पाया
स्वतन्त्रता का मन्त्र,हिन्द में घर -घर छाया
प्रण का पथिक प्रबुद्ध है,उसे न उर में त्रास है
प्रण पर मर मिटाना सहज,यह भारत इतिहास है