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"प्रतिमा रोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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पाषाण थे वे
 
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े  
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न पिंघले ,न जुड़े  
 
टूटे न छूटे ।
 
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अश्रु ने कही
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सिर्फ तुमने बाँची
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व्यथा की कथा।
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घने अँधेरे
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प्रकम्पित लौ तुम
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किए उजेरे।
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निराश मन
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चूम तेरे अधर
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पाता जीवन
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नेह का नीर
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हर लेना प्रिय की
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तू सारी पीर।
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04:11, 10 अगस्त 2018 का अवतरण


21
मर जाऊँगा,
तुम्हारे लिए जग में
फिर आऊँगा !
22
पूजा न जानूँ
न देखा ईश्वर को
तुमको देखा !
23
प्रतिमा रोई
कलुष न धो पाई,
भक्तों ने बाँटे ।
24
व्यथा के घन
फट जाएँ जो कभी
पर्वत डूबें ।
25
नाग-नागिन
लिपटे तन-मन
जकड़ा कण्ठ ।
26
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े
टूटे न छूटे ।
27
अश्रु ने कही
सिर्फ तुमने बाँची
व्यथा की कथा।
28
घने अँधेरे
प्रकम्पित लौ तुम
किए उजेरे।
29
निराश मन
चूम तेरे अधर
पाता जीवन
30
नेह का नीर
हर लेना प्रिय की
तू सारी पीर।

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