भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
प्रतिरोधी
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
बहता नीर
आप सभी तो
समझदार हैं क्या यह उचित फैसला फ़ैसला होगा?अनुशासन के बिना धरा पर नदियाँ नहीं जलजला ज़लज़ला होगा।
सबकी
आँखों में डर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
मुझसे ऊँचा
आकाश अगर
इस जिद ज़िद पर है फिर किसका क्या उड़ान भरना!
अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना।
खतरा ख़तरा हर
पंछी पर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,960
edits