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::नचिकेता प्रिय प्रज्ञा तुम्हारी, देख कर मन मुदित है,<br>::जो तर्क से प्रायः परे, मिले प्रभु कृपा से विदित है।<br>::अति अडिग दृढ़ श्रद्धा तुम्हारी, सब प्रलोभन से परे,<br>::तुम सा जिज्ञासु मिले तो, आत्म ज्ञान कथित करें॥ [ ९ ]<br><br>
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::इस विश्व के विश्वानि वैभव, धन व श्री सुख संपदा,<br>::से वृति तुम्हारी विरत निःस्पृह अनासक्त सदा सदा।<br>::वेदों में जो स्तुत्य सुख का, वृहत वर्णन वृहद है,<br>::इनके प्रति शुचि त्याग वृति, तुम्हारी दुर्लभ सुखद है॥ [ ११ ]<br><br>
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::सुनकर ग्रहण मानव करे, आध्यात्म के उपदेश को,<br>::फ़िर तत्वमय चिंतन करें,ऋत आत्म तत्व प्रवेश को।<br>::आनंद में ऋत ज्ञान के ज्ञानी वही तल्लीन हो,<br>::नचिकेता अधिकारी हो तुम, ऋत ब्रह्म ज्ञान प्रवीण हो॥ [ १३ ]<br><br>
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::जिस परम पद का वेद पुनि -पुनि कथन प्रतिपादन करें,<br>::सम्पूर्ण तप जिस परम पद का लक्ष्य और साधन करें।<br>::जिसके लिए ही ब्रह्मचर्य का, कठिन व्रत साधक करे,<br>::वह परम तत्व है "ॐ " अक्षर महत उद्धारक नरे॥ [ १५ ]<br><br>
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