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प्रधानमंत्री को पसीना / उमाशंकर चौधरी

लोगों का वह जत्था जो समझते थे
इस लोकतन्त्र में अपने होने का मतलब
उनकी हँसी उड़ाने के लिए सामने पड़ी है उसकी लाश
उसकी लाश जिसने पिछले एक सप्ताह से
प्रधानमंत्री से मिलने की कोशिश के बाद
हार कर कर लिया है आत्मदाह

प्रधानमंत्री से मिलना कठिन ही नहीं
नामुमकिन है, कहते थे उनके सुरक्षाकर्मी
सुरक्षाकर्मी जिनके सिर पर था सुरक्षाकवच
माथे पर मुकुट और हाथ में भाला और तलवार

वह, जो सात दिनों तक करता रहा मिन्नत
आख़िरी दिन मरने से पहले
दिखलाया था अपना वोटर आई-कार्ड
अपने नागरिक होने का सबूत

तब अपने मरने से ऐन पहले
मरने का निर्णय लिया था इसलिए कि
उसने देखा था खुद अपना वोटर आई-कार्ड
और जिसमें उसके फ़ोटो के बदले चिपकी थी
एक गिलहरी की तस्वीर

वह प्रधानमन्त्री से क्यों मिलना चाहता था
इस सवाल का जवाब ख़त्म हो गया
उसकी मौत के साथ
ऐसा लग सकता है
लेकिन चूँकि सवाल कभी ख़त्म नहीं होते
इसलिए हम बिना जाने ही यह बूझ गए हैं कि
क्यों मिलना चाहता था वह प्रधानमन्त्री से
और हममें से ऐसा कौन है
जो नहीं मिलना चाहता है प्रधानमन्त्री से
इन सवालों के साथ कि
क्यों करवट बदलने पर बजने लगती हैं हड्डियाँ
क्यों पैरों के ज़मीन पर सीधे सटने से
तलुवे पर पड़ जाती हैं ठीक सूखे खेत की तर्ज़ पर दरारें
उस बड़े से पक्षी का नाम क्या है
जो झपट्टा मारकर ले उड़ा है
मेरी-उसकी थाली से रोटियाँ
और पूछने को तो यह भी पूछा जा सकता है कि
कमीज़ के टूट गए बटन को
दुरूस्त करने के लिए कहँ से मिलती है सुई
और कहाँ से मिलता है धागा

जिस समय उसने छिड़क लिया था
अपनी देह पर मिट्टी का तेल
उस समय उच्चस्तरीय बैठक में शामिल थे प्रधानमन्त्री

प्रधानमन्त्री कहते हैं हम नागरिक समाज बनाएँगे
प्रधानमन्त्री कहते हैं हम बन्द कर देगें
फ़सलों में कीड़ों का लगना
प्रधानमन्त्री कहते हैं हम बन्द कर देंगे बच्चों का रोना

वह जिसकी जली लाश हमारे सामने पड़ी है
वह इस लोकतन्त्र पर ही नहीं
प्रधानमन्त्री की इन इच्छाओं पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है
और सबसे बड़ा तो चुनाव आयोग के उस प्रचार पर
जो वोट नहीं करने पर हमें शर्मिंदा करता है
अब भीड़ से निकली इस आवाज़ को कौन दबा सकता है कि
साले और करो वोट

हारने का नहीं भागने का नहीं
यह अक्लमंदी से सोचने का वक़्त है, साथी !
यह सामने जली पड़ी लाश तो सबको दिखती है
लेकिन यह कोई नहीं है जानता कि
जब उसने अपने ऊपर डालकर मिट्टी का तेल
लगा ली थी आग
तब उस आग की धधक से बन्द कमरे में
ए०सी० की उस कृत्रिम हवा के बीच
इस कड़ाके की ठंड में भी प्रधानमंत्री की कान के ठीक पीछे से
चू पड़ी थी पसीने की एक बूँद
और प्रधानमंत्री भौचक रह गए थे