Last modified on 16 सितम्बर 2011, at 20:54

प्रबन्धन / रेखा चमोली

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> पुराने किस्से कहानियों …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पुराने किस्से कहानियों में सुना था
ठगों के गॉव के बारे में
ठगी बहुत बुरा काम होता था
धीरे-धीरे अन्य चीजों की तरह
ठगी का भी विकास हुआ
अब ये काम लुकछिप कर नहीं बल्कि
खुलेआम प्रचार प्रसार करके
सिखाया जाने लगा
ठगों के गॉव अब किस्से कहानियों में नहीं
शानों शौकत से
भव्य भवनों में आ बसे बसे हैं
जहॉ से निकलते हैं
लबालब आत्मविश्वास से भरे
छोटे-बडे ठग

जो जितने ज्यादा लोगों को ठग लेता है
उतना ही बडा प्रबन्धक कहलाता है।