Last modified on 21 नवम्बर 2014, at 13:42

प्रभुजी! लाज तिहारे हाथ / स्वामी सनातनदेव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 21 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राग मेघरंजनी, तीन ताल 2.9.1974

प्रभुजी! लाज तिहारे हाथ।
होहिं कोटि अपराध तदपि तुम तजियों कबहुँ न साथ॥
मैं अपराधी जनम-जनम को, कहे बढ़ै बहु गाथ।
तदपि स्याम! सब आस छाँड़ि अब धर्यौ चरन पै माथ॥1॥
अब तो नाथ! तिहारो हूँ मैं तुम मेरे परमार्थ।
तुमहिं पाय मैं भयो कृतारथ, सब विधि भयो सनाथ॥2॥
मेरे तुम, मैं स्याम! तिहारो, गाऊँ तव गुन गाथ।
गयी बिसारि मानि अपनो ही धरहु माथ निज हाथ॥3॥
सब कछु त्यागि तिहारो ही ह्वै रहूँ तिहारे साथ।
करूँ सदा तव पद-परिचरिया रचि-पचि तव रति पाथ<ref>प्रीति रूपजाल।</ref>॥
तव रति ही हो एकमात्र गति, भावै और न बात।
तुम ही सों हो नेह निरन्तर, मैं पायक तुम नाथ॥5॥

शब्दार्थ
<references/>