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प्रभुजी अब जनि मोंहि बिसारो / धरनीदास

प्रभुजी अब जनि मोंहि बिसारो।
असरन-सरन अधम-जन-तारन, जुग जुग विरद तिहारो।
जहँ जहँ जनम करम बसि पाय, तहँ अरूझे रस खारे।
पांचहु के परपंच भुलानो, धरेउ न ध्यान अधारो।
अंधगर्भ दस मास निरंतर, नखसिख सुरति सँभारो।
मंजा मुत्र अग्नि मल कृम जहँ सहजै तहँ प्रतिपारो।
दीजै दरस दयाल दया करि, ऐगुन गुन न बिचारो।
धरनी भजि आयो सरनागति, तजि लज्जा कुल गारो।