Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 21:40

प्रभु मेरी दिव्यता में / अनीता वर्मा

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रभु मेरी दिव्यता में
सुबह-सबेरे ठंड में कांपते
रिक्शेवाले की फटी कमीज़ ख़लल डालती है

मुझे दुख होता है यह लिखते हुए
क्योंकि यह कहीं से नहीं हो सकती कविता
उसकी कमीज़ मेरी नींद में सिहरती है
बन जाती है टेबल साफ़ करने का कपड़ा
या घर का पोछा
मैं तब उस महंगी शॉल के बारे में सोचती हूं
जो मैं उसे नहीं दे पाई

प्रभु मुझे मुक्त करो
एक प्रसन्न संसार के लिए
उस ग्लानि से कि मैं महंगी शॉल ओढ़ सकूं
और मेरी नींद रिक्शे पर पड़ी रहे.