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प्राणकिशोर के नाम पत्र / ग़ुलाम रसूल ‘संतोष’/ अग्निशेखर

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1995 में लिखे अपने एक पत्र में यह कविता लिखी है कवि ने
हमने जलाई
ऋषियों की वाटिका
          अपने हाथों आज
सप्त ऋषियों की प्रज्ञा थी
पास हमारे
बहती वितस्ता थी
अकूत था विश्वास

भेद समझो मेरी बात का
यह कौन आया
और साथ अपने
यह क्या लाया

अतीत था कवच हमारा
आधार जीवन का
पोथियाँ पढ़कर
राख हुए किस आग में
जलकर हम

खो गई आज हम से
हमारी परम्परा
किया विकृत जो गढ़ा था
चेहरा अपना

हमने जलाया स्वर्ग अपना
जहन्नुम की आग से
जम गई हैं आँखें बर्फ़-सी
सब की
किस-किस बात का मनाएं मातम..
कितना रोएँ ...

हमने जलाई
ऋषियों की वाटिका
          अपने हाथों आज ।

मूल कश्मीरी भाषा से अनुवाद : अग्निशेखर