प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले ।
लुब्ध मकरंद के भ्रमर ज्यों बस भये, देखि रवि उदय मानो कमल फूले ॥१॥
करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो, सुनत ब्रजवधू तन सुधि जु भूले ।
चतुर्भुज दास श्री यमुने प्रेमसिंधु में लाल गिरिधरनवर हरखि झूले ॥२॥
प्राणपति विहरत श्री यमुना कूले ।
लुब्ध मकरंद के भ्रमर ज्यों बस भये, देखि रवि उदय मानो कमल फूले ॥१॥
करत गुंजार मुरली जु ले सांवरो, सुनत ब्रजवधू तन सुधि जु भूले ।
चतुर्भुज दास श्री यमुने प्रेमसिंधु में लाल गिरिधरनवर हरखि झूले ॥२॥