भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:24, 2 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ
मैं प्यार के सरोवर में आग लिख रहा हूँ।

मेरी जो बेबसी है, उस बेबसी को समझो
उजडे़ हुए चमन को मैं बाग लिख रहा हूँ।

दामन पे मेरे जाने कितने लहू के छींटे
धोया न जा सके जो वो दाग लिख रहा हूँ।

दुनिया है मेरी कितनी ये तो नहीं पता, पर
धरती है मेरी जितनी वो भाग लिख रहा हूँ।

कितने अमीर होंगे दस बीस फ़ीसदी बस
कमज़ोर आदमी का मैं त्याग लिख रहा हूँ।

सब लोग मैल अपनी मल-मल के धो रहे हैं
असहाय साबुनों का मैं झाग लिख रहा हूँ।