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प्राणो में बाँसुरी / दिनेश कुशवाह

कितने दिन हुए
धूल में खेलते किसी बालक को
उठाकर गोद में लिए हुए ।

मुद्दत हुई अपने हाथ से पकाकर
किसी को जी भर खिलाकर
अपनी आत्मा को तृप्त किए हुए ।

कितने दिन हुए
हाथ से बन्दूक छुए
जबकि वह मुझे अच्छी लगती है ।

किसी जूड़े में फूल गूँथे हुए
कितने दिन हुए
कितने दिन हुए
नदी में नहाए हुए ।

कितने दिन हुए
न रोमाँच हुआ
न जी टीसा
न प्राणो में बाँसुरी बजी ।

कितने दिन हुए
न खुलकर रोया
न खुलकर हँसा
न घोड़े बेचकर सोया ।