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{{KKCatKavita}}:प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ीबाँध देती है, तुम्हारा मन, हमारा मन,फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-डूबकरडूबन:मिलती मुझे राहत बड़ी!
प्रात सद्य:स्नातकन्धों पर बिखेरे केशआँसुओं में ज्योंधुला वैराग्य का सन्देशचूमती रह-रहबदन को अर्चना की धूपयह सरल निष्कामपूजा-सा तुम्हारा रूपजी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, :यदि मुझेमिलती रहे:काले तमस् तमस की छाँह में
ज्योति की यह एक अति पावन घड़ी!
प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!
चरण वे जोलक्ष्य तक चलने नहीं पायेवे समर्पण जो नहोठों तक कभी आयेकामनाएँ वे नहींजो हो सकीं पूरी-घुटन, अकुलाहट,विवशता, दर्द, मजबूरी-:जन्म-जन्मों की अधूरी साधना, पूर्ण होती हैकिसी मधु-देवताकी बाँह में!:ज़िन्दगी में जो सदा झूठी पड़ी-:प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी!
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