Last modified on 12 अक्टूबर 2017, at 15:04

प्रार्थना के पल / निधि सक्सेना

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 12 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रार्थना के पलों में
स्वतः मुंद गई आँखे
कि प्रार्थना का उद्भव भीतर था
कुछ देर बाह्य संसार से विलग
अपने भीतर लयबद्ध होना
विभोर होना
अभिभूत होना था
करुण होकर
अनंत नीलिमा से खुद को भर लेना था

असहाय दर्द में भी तो मूँद लिए थे नयन
कि तब खाली होना था
मुक्त होना था
दर्द से चीत्कारती वेदना को
भीतर की ऊर्जा में विलीन कर देना था
कि शक्ति का केंद्र तो भीतर ही है

इस खाली होने और भर जाने के मध्य
प्रार्थना के अनहद राग
और दर्द के आतंकित क्षणों से परे
जब जब आँखे मूंदी
अनंत स्मृतियाँ सिमट आईं
झरती झिलमिलाती

ये स्मृतियाँ कहीं दर्द में पगी प्रार्थनाएँ तो नही.