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"प्रार्थना बना दो / कुमुद बंसल" के अवतरणों में अंतर

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उम्मीद भरा कोई उद्घोष हो
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संकटों से जूझने का जोश हो
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रक्त को अपने शिथिल न पड़ने दे
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निमंत्रण दे बादलों को, बिजली कड़कने दे
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विविधता भरे जग में मत रोको सृजन
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मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पंदन
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प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रंदन
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तप सत्य साधना में बन जाओ कुन्दन
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जिंदगी की ढीली तारों को कस दे
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या रब! जीवन में कुछ तो रस दे
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स्मृतियों में ही रह गया है
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अब तो पक्षियों का वास
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नहीं होता मोहक
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अबूझ बोली का एहसास
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दिनकर की ओजस्वी किरणें
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करती,न  थी पक्षियों को मगन
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नन्हे पंखों की चुनौती
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स्वीकारता था विशाल गगन
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मानव-उन्नति लील गई
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अनेक पक्षियों की पहचान
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तड़पता हृदय, भटकते नयन
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कभी तो पक्षियों की परछाइयों का
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ही हो जाए गुमान
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23:40, 17 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

1
उम्मीद भरा कोई उद्घोष हो
संकटों से जूझने का जोश हो
रक्त को अपने शिथिल न पड़ने दे
निमंत्रण दे बादलों को, बिजली कड़कने दे
2
विविधता भरे जग में मत रोको सृजन
मत बाँधो सीमाओं में हृदय-स्पंदन
प्रार्थना बना दो इस जग का हर क्रंदन
 तप सत्य साधना में बन जाओ कुन्दन
3
जिंदगी की ढीली तारों को कस दे
या रब! जीवन में कुछ तो रस दे
4
स्मृतियों में ही रह गया है
अब तो पक्षियों का वास
नहीं होता मोहक
अबूझ बोली का एहसास
दिनकर की ओजस्वी किरणें
करती,न थी पक्षियों को मगन
नन्हे पंखों की चुनौती
स्वीकारता था विशाल गगन
मानव-उन्नति लील गई
अनेक पक्षियों की पहचान
तड़पता हृदय, भटकते नयन
कभी तो पक्षियों की परछाइयों का
ही हो जाए गुमान
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