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प्रियतम विछोह / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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जग जन्म भयो सँगही सँग औ, सँगही रस खेल केतो करिये।
सँग ही सँग गौधन छोड़ि चले, सँग ही वन काहुन ते डरिये॥
सँगही यमुना-जल केलिकियो, सँगही सुख सोइ निशा भरिये।
अब ऐसे भये सपनेहु नहीं, धरनी मन धीरज क्यों धरिये॥7॥