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प्रियसम्मिलन / शब्द प्रकाश / धरनीदास

सूतलि अछलि खने एलहु गोसाईं साँई, छलिहूं अचेत पिंड चेत भेल तेखना।
माथे हाथ देलछि जगाय जनु लेलछि, अनेग कला केलछी नवाजि आये एखना॥
जेहि गते छलिहूँ उठलिहूँ मे तेहि गते, पावन पुरुष पाव नीक भेल देखना।
धरनी कहेछि विसरेछि न छिनक मोहि, हिय में छपालछि करेंछि कोटि पेखना॥14॥