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प्रीत-1 / विनोद स्वामी

कुहाडि़यो अर दांती
काटण रै काम आवै
झ्यान जाणै,
पण याद कर
आपां नै किंयां जोड़ दिया आं।
जांटी छांगती वेळा
मेरै हाथ सूं
जद छूटग्यो कुहाडि़यो
राह बगती थमगी तूं।
म्हैं
पेडै कनै आ’र पग लटकायो
अर तूं हाथ सूं कुंहाडि़यो ऊंचायो,
जद मेरै फाबै में अड़ग्यो बो
म्हनै ईंया लाग्यो
जाणै आपां कुंहाडि़यै रै मिस
हाथ मिलाया है।
याद कर
अेक दिन तूं
नीरणी पाड़ण गई
अर म्हैं
ल्यावण गयो पूळो
बढ में दांती कोनी लाधी
बीं दिन
पैलीपोत म्हैं
दांती रै मिस दिल माग्यो
अर तूं
अचाणचक पसीनै सूं हळाडोब होगी
जाणै
पूळो म्हैं कोनी तूं काट्यो है।
लूण तो खारो ई होवै
सै जाणै
अर काचा काकडि़या ई मीठा कद होवै?
म्हैं आंगळी सूं काकडि़यो चीरयो,
तूं काढ्या बीज,
लगायो लूण,
बतळाया-
काकडि़या मीठा कद होसी?
काकडि़या जादा कद होसी?
परगै कित्तो हो आं रो सुवाव।
खारो काकडि़यो अर लूण
आपणी निजरां में नेह देख
कितणा मीठा होग्या
बीं दिन।