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प्रीत के पाहुन पियासल जा रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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प्रीत के पाहुन पियासल जा रहल
घात करके आदमी बा गा रहल

चोर सीनाजोर बाड़े मौज में
डर के इज्जतदार बा शरमा रहल

हिल गइल विश्‍वास के जड़ लोग के
मुँह-कँवल हर रोज बा मुरझा रहल

उठ रहल आन्हीं हृदय-आकाश में
शक के बदरी अनसोहातो छा रहल

ना समझ पवलीं खता के का कइल
राह चलते लोग गोली खा रहल

खेत-बारी बेंच के उम्मीद पर
पढ़ के लइका कवनो लायक ना रहल

एक दिन खातिर जे गलती हो गइल
आज तकले बा जिया पछता रहल

खटके दुबरइले ‘पराग’ बेगार में
बैठ के खइला से लोग मोटा गइल