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प्रीत री रांमकथा / चंद्रप्रकाश देवल

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पीपळी रै पांन-पांन बाजै है तड़ातड़
देख पलळै अपांरै प्रीत री पड़छांवळी
समिया रै पड़वै पड़ी
इण मोटी छांटां रा ओसरता मेह में

सून्याड़ री इण परणकुटी
अपां ताकां हां सिणफिण सिळगता
किणी दूजा हाथ रौ आसरौ
जिकौ आय
अपां नै ओट दे अबराई में ऊंडौ
भोभर हेट
थूं नोज दरकै भोमजा
अै तरेड़ां तौ म्हारै पांती आयोड़ी
जिका में चापळ्योड़ी है, जंबू दीप री संदवाय
जुगांनजुग सूं दब्योड़ा
सड़्योड़ा ओरण री बास
म्हनै इज भोगणौ है अणविसास रौ डंड
अर हेत री अजोध्या सूं देसाटौ
पण छता गाभां बारै निसरतौ लाज मरूं
सगळी परजा उघाड़ै डील
आपरी जूंण रा किरकोड़ उंचायां
इचरज सूं भाळै है अेकधार
गाभां कांनी
आधा-अधवीठा सवाल है
मांय रा मांय छेकता
फगत खुद रौ सुर है भासा-बायरौ
अेक घूं-घूं री भणकार
जिण माथै बोल बिहूंणी थूं परगटावै
अंतस रौ हूंकारौ

वा, बस
पूरी व्ही अपांरी रांमकथा
थारै हरण री, रावण रै मरण री दरकार कठै!