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प्रेमकथा-3 / शुभा

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एक आदमी प्रतिद्वंद्विता की औड़ से बाहर हो जाता है ख़ुद
दौड़ की लाईन देखता है एक फ़िल्मी दृश्य की तरह
उसके पार जैसे कुछ है जिसे देखता वह
अकेला नहीं होता
धारण करता है दुख और शोक चुपचाप
इच्छाओं को ज़बान पर नहीं लाता

कभी-कभी वह एक रहस्य की तरह नज़र आता है
वह हँसता भी है और खाना भी खाता है।