Last modified on 26 जून 2009, at 01:52

प्रेमकथा-5 / शुभा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:52, 26 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |संग्रह=}} <Poem> कोई भागा है चप्पलें छोड़कर घा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोई भागा है चप्पलें छोड़कर
घास रौंदी हुई है
टूटी हुई चूड़ियाँ चमक रही हैं
इधर कोई चीज़ घसीटे जाने के निशान हैं
यहाँ घास ख़ून में डूबी हुई है।