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प्रेम-संगीत / कविता भट्ट

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1-मुक्तक
गहन हुआ अँधियार
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
2
नीरव मन का कोना
अँसुवन की है धार।
छेड़ प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
3-दोहा
छोटी- छोटी बात पर,
मत करना तुम रार ।
मेरे जीवन का सभी
तुम पर ही अब भार
4-दोहा
माटी-सी इस देह के
तुम हो प्राणाधार
तुम्हीं आत्मा हो प्रिये !
मैं तो बस संचार ॥
-0-