Last modified on 13 दिसम्बर 2013, at 21:22

प्रेम-5 / सुशीला पुरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 13 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रेम
आग..आँधी..बाढ़..बारिश
से बचता-बचाता
छप्परों वाला घर है
मिट्टी का

मन की हल्दी
तन का चावल
पीस घोलकर बनती हैं अल्पनाएँ
चौखटों पर

सिक्कों-सी जड़ी होती हैं आँखें
जहाँ होते हैं...
अगोर और आँसू

किन्तु
कभी द्वार में
किवाड़ नहीं होते...!