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प्रेम की इक नदी के लिए / सोनरूपा विशाल

नेह का इक समंदर रचा प्रेम की इक नदी के लिए ।

शून्य होने की चाहत लिए गुनगुनी गुनगुनाहट लिए
थे नयन याचकी याचकी मांगलिक झिलमिलाहट लिए

जो रची थी विधाता ने ख़ुद एक नेकी बदी के लिए ।
नेह का एक समंदर रचा प्रेम की इक नदी के लिए।

सत्य स्वीकृत तो होना ही था दो को इक में बिलोना ही था
था विलय जल का जल में ही जब तब ये खोना भी पाना ही था

एक लम्हे में जी ली गयी एक पूरी सदी के लिए ।
नेह का इक समंदर रचा प्रेम की इक नदी के लिए।