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प्रेम की कविता / आस्तीक वाजपेयी

मैं जब सब भूल जाता हूँ
तब भी कुछ बच जाता है ।
हार से अधिक
वे वाक्य बच जाते हैं जो
तुमसे कभी कह नहीं पाया,
या शायद ख़ुद से नहीं कह पाया ।
हर परछाई में मैं ख़ुद को
तुमसे छिपा लेता हूँ ।
और छिपने से ख़ुद में छिप जाता हूँ

वहाँ जहाँ रोशनी की जगह
मेरी उम्मीद आती है लालटेन पकड़ कर
शायद प्रेम वह जगह है यहाँ
हमारी विफलताएँ आती हैं सुस्ताने,
फिर से भाग जाने, और बच जाते हैं
हम फिर एक दूसरे से स्वप्न में
मिल जाने ।