रोज़मर्रा के क्लेश में, संताप में, जद्दोजहद में भी वह किसी सेंध से घुस कर लड़ाई के लिए ज़रुरी जीवट की आँच अपनी अदीठ उंगलियों से ज़रा-ज़रा बढ़ा देता है.
कभी-कभी वह प्रिय से छुपने की कोशिश करता है. कभी-कभी खुद से भी.
वह परस्पर विलोमों का समवाय है. वह जितना विरुद्धों का सामंजस्य है उतना ही समानताओं का असमंजस भी.
वह अछोर आकाश है. निरवधि काल और विपुल पृथ्वी की एकांत उपस्थिति.
उसके विष से नीली पड़ रही है मन की देह. उसी में प्राण फूंकेगा वह अपनी संजीवन छुअन से.
उसके अपने उजाले हैं - अपने अंधेरे.
उसका हृदय में जगना है कि गले में टंगे एलबेट्रॉस के शव का स्वत: टूट कर गिरना है. वही है जो त्रास से त्राण तक ले जाएगा. वही भाव-उर्मि है, जो शाप का परिहार है.
उसमें होना भारहीन होना है. ढाई आखर के सा-भार जीवन में होना है.
वह प्रतीक्षा है. प्रतीक्षा की असहनीयता भी. उसकी यातना, रोमांच और आनन्द भी.
वह अनश्वरता में ओट लेते अध्यात्म पर एक गुपचुप मुस्कुराहट के साथ अपनी धुरी को उतने ही गुपचुप-पन से बदल सकता है. उसका यही कर सकना प्रेमियों को एक अन्देशे और अंतत: सकते में डाले रखता है. वह एक प्रश्नवाचक चिन्ह है जिसके पथ में न अल्प, न पूर्ण; कोई विराम आता ही नहीं.
वह अपनी कथाओं में रहता है. अलग-अलग कथा-घरों में. कविताएं उसकी खुशबू को तितलियों की तरह पकड़ने की कोशिश करती हैं. उसके सुखान्त और दुखान्त हैं मगर उसका कोई कथान्त नहीं है. कवि और कथाकार उसे बूझने की जद्दोजहद में एक बुखार में कागज़ों पर भटकते हैं. इबारतें खत्म हो जाती हैं; अर्थ फिर भी शेष रह जाते हैं.
उसके आसपास की दुनिया बदलती जाती है. उसके ढब-ढंग भी. पर उसकी ज़रुरत, उसकी तलाश, उसके लिए द्वन्द्व, उसकी प्यास कभी नहीं बदलती.वह धारा-वाहिक है लगातार.
जो प्रेम में रहने की ताब नहीं ला पाते वे भी प्रेम के अभिनय या आभास में रहने की ज़रुरत से इंकार नहीं कर पाते. अभिनय धीरे-धीरे विदा ले लेता है. वही बच रहता है जिसे मंजूर करना इतना मुश्किल रहा.
प्रेम करना मनुष्यता की बहुत पुरानी, लाइलाज, चीठी आदतों में शुमार है. जो इस संसार में कुछ भी अच्छा कर सके, इस संसार से प्यार करने के चलते ही कर सके. क्योंकि प्रेम करना अपने और दूसरों के बैठने के लिए अपने हिस्से के संसार को थोड़ा साफ-सुथरा बनाना है.
संवाद प्रेम को सींचते हैं. और इसके लिए वे हमेशा शब्दों पर निर्भर नहीं होते.