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प्रेम को मनकों सा फेरता मन-६ / सुमन केशरी

तिघरा से होते हुए
दीख पड़ा
गुप्तेश्वर महादेव

कई कई बार सुना नाम गुप्तेश्वर
ठीक तुम्हारे मन की तरह
न खुला
न बंद

कितनी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं
वहाँ पहुँचने के लिए
फिर वापस खुद तक लौटने के लिए
जो कभी हो ही नहीं पाया
न कभी पहुँची
न लौटी ही

उस दिन भी
दीख पड़ा
गुप्तेश्वर महादेव
बादलों में छिपा....