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प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम / शिवदीन राम जोशी

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प्रेम बसाया बस रहा, नगर डगर में प्रेम,
तन मन में, बन में बसा, नर में घर में प्रेम।
नर में घर में प्रेम, प्रेम है प्यारे हर में,
कृष्ण नाम में प्रेम, प्रेम है सीतावर में।
जल में थल में प्रेम है, प्रेम जहां नहीं नेम,
शिवदीन नेममय प्रेम है, प्रेम प्रेममय प्रेम।
                        राम गुण गायरे।।