भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम में-3 / निशांत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने कहा
तुम तूफ़ान हो
तुम बिगड़ गई

मैंने कहा
तुम फूल हो
अपने ही सौन्दर्य बोझ से दब गई

मैंने कहा
तुम हवा हो
शरमाकर तुम्हारी नज़रें झुक गईं

मैंने कहा
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
और तुम्हारी बाहें खुल गईं
असीम सम्भावनाओं को पकड़ने के लिए,
पृथ्वी,समुद्र और आकाश की तरह ।