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प्रेम में सब संभव है / सरिता महाबलेश्वर सैल

उसने मेरे सर पर से
भरी दुपहरी में धूप उतार दी
और कहा शाम हो गई
हमने पलक मुद्दे मान लिया
चाँद को फ़लक पर से उतारकर
उसने जेंब में रख लिया
और कहा सुबह हो गई
हमने अपनी पलकों को
उनकी आँखों के दहलीज़ पर रखा
और भोंर का स्वागत किया
और कुछ इस तरह से एक दिन
समंदर नदी को मिलने चला
और फूल अपने बीज को ढूँढने
कोयल भी जोड़ने लगी घोंसला
कर देता है प्रेम अंसभव को संभव