प्रेम-रस-सागर नागरि राधा।
चरन चारु नख-चंद्र-चंद्रिका हरत सकल तम-बाधा॥
सुमिरत तुरत जरत बहु जनमनि के अगनित अपराधा।
मिलत प्रेम-पीयूष सुदुरलभ, सफल सकल सुचि साधा॥
प्रेम-रस-सागर नागरि राधा।
चरन चारु नख-चंद्र-चंद्रिका हरत सकल तम-बाधा॥
सुमिरत तुरत जरत बहु जनमनि के अगनित अपराधा।
मिलत प्रेम-पीयूष सुदुरलभ, सफल सकल सुचि साधा॥