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प्रेम / उमेश भारती

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प्रेम, सरसों के फूल छिकै।
हमरोॅ दोस्त।
प्रेम, गुलाब छिकै
कैक्टसो।
प्रेम, सूर्य रोॅ सवेरा छिकै
तेॅ रात के गहनती।
प्रेम, व्यक्तिगत सौन्दर्य छिकै, सार्वजनिक नै।
प्रेम भोग छिकै।
एकरा परिभाषा में नैं बाँधोॅ/अच्छा होथौं।
प्रेम; जिनगी के सत्य छिकै।
प्रेम परमानन्द छिकै।
इ के कहै छै
पत्नी सें जादा महत्व छै प्रेयसी के?
पत्नियो सत्य छिकै/प्रेयसियो सत्य।
पत्नियो सें प्रेम करलोॅ जाय छै
प्रेयसियो सें।
प्रेम, जीवनसापेक्ष छै/इ विराट छै।
तेॅ प्रेम बड़ोॅ छै आकि भक्ति?
प्रेम सें बढ़लोॅ छै भक्ति।
भक्ति प्रेम के पराकाष्ठा छिकै।
प्रेम समर्पण के स्थिति छिकै।
भक्ति में दैहिक सुख शून्य होय छै
आरो प्रेम में यहूं सुख होय छै।
की प्रेम एगी त्रासदी छिकै?

हों, प्रेम एगो त्रासदियो छिकैं
एगो तड़प भी/एक दर्द
एगो काँटो।
कैन्हेंकि प्रेम जबेॅ स्वार्थ के बात करै छै
आरो ओकरोॅ पूर्त्ति नैं होय छै
तबेॅ वहेॅ प्रेम त्रासदी बनी जाय छै।
प्रेम दुख छिकै
प्रेम एगो भटकाव भी
प्रेम एगो उत्सव छिकै।
प्रेम एगो उमंग छिकै।
आवोॅ हमरासिनी प्रेम करियै
आरो ओकरा भोगियै
यहीं हमरोॅ जीवन केॅ पूरी करै छै।
प्रेम
जीवन के एगो जरूरी -
आरो शाश्वत हिस्सा छिकै।
प्रेम शाश्वत छै।
प्रेम सब्भे रोॅ कमजोरी।
प्रेम गंगा होय छै।
प्रेम काँटोॅ सें भरलोॅ गुलावो।
नैं नाहवोॅ वै में ओकारा पोखर समझी -
जों हेनो होथै तेॅ तोरा
त्रासदी के गुफा सें गुजरेॅ होथौं,
प्रेम गंगा छिकै।
गंगा मानी केॅ नहैला सैं
मोॅन पवित्र होय छै

शब्दो राष्ट्रो
आवोॅ प्रेम सें आदमी केॅ
आदमी केॅ राष्ट्र में जोडौं
प्रेम सें टूटते मूल्य केॅ
गिरतें मानवीय संबंध केॅ
एगो नया जमीन मिलतै
जे आयकोॅ समय रोॅ
सबसें बड़ोॅ जरुरत छिकै।
आवोॅ प्रेम करियै
प्रकृति के नैसर्गिकता सें।
धूप, पानी, गाछ, मनुष्य, सब्भे सें करोॅ।
हेनोॅ होथै तेॅ तोहें अकेलोॅ नै होभा
एगोॅ मजबूत व्यक्तित्व के एहसास हाथौं
प्रेम कालजयी छै।
हम्में प्रणाम करै छियै ऊ प्रेम केॅ
जेकरोॅ अस्तित्व सृष्टि के नींव सें बरकरार छै
आरो जेकरा पावी केॅ/देॅ केॅ
हमरासिनी धन्य-धन्य होय जाय छियै।
ढाई आखर के ई प्रेम सें बढ़लोॅ
आरो बड़ोॅ सत्य कोय हवो नैं पारेॅ।

आवौॅ
घरोॅ-घरोॅ में प्रेम के दीया
आय जलावै के जरूरत छै
यहीं अन्धकार केॅ सोखेॅ पारतै!