भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम / सुमन केशरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन केशरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> '''1. ओम् की मूल ध्व…)
 
पंक्ति 42: पंक्ति 42:
 
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही
 
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही
 
जितने तुम्हारे
 
जितने तुम्हारे
या शायद अब वे मेरे ही हो गये हैं-- गर्मजोशी से थामे हाथ ।
+
या शायद अब वे मेरे ही हो गए हैं-- गर्मजोशी से थामे हाथ ।
 
</poem>
 
</poem>

17:35, 15 अप्रैल 2012 का अवतरण

1.
ओम् की मूल ध्वनि-सा
तुम्हारा प्यार
मस्तिष्क की भीतरी शिराओं तक गूँज गया है
और मुझे हिलोर गया है अंदर तक

एक गहरी सी टीस रह-रह कर उठती है
और मन शिशु की तरह माँ का वक्ष टटोलता है

मैंने तुम्हारे प्रेम को कुछ इस तरह महसूसा
जैसे कि माँ बच्चे के कोमल नन्हें अनछुए होंठों को
पहली बार अनचीन्हे से अंदाज में महसूसती है

दर्द का तनाव अपने सिरजे को छाती से लगाते ही
आह्लाद की धारा में फूट बहता है क्रमश:

गालों पर दूध की बुँदकियाँ लगाए नन्हें से
बच्चे से तुम
अपने विशाल कलेवर के साथ खड़े हो
मेरे सम्मुख

मैं गंगोत्री की तरह फूट पड़ी हूँ ।

2.
रात के उस पहर में
जब कोई न था पास
सिवाय कुछ स्मृतियों के
सिवाय कुछ कही-अनकही चाहों
और कुछ अस्फुट शब्दों के
सिवाय एक अधूरे सन्नाटे के

उस वक़्त मैंने तुम्हारे शब्दों को अपना बना लिया

सुनो
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही
जितने तुम्हारे
या शायद अब वे मेरे ही हो गए हैं-- गर्मजोशी से थामे हाथ ।