भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम / सुमन केशरी

2 bytes added, 03:58, 23 अगस्त 2013
मस्तिष्क की भीतरी शिराओं तक गूँज गया है
और मुझे हिलोर गया है अंदर तक
 
एक गहरी सी टीस रह-रह कर उठती है
और मन शिशु की तरह माँ का वक्ष टटोलता है
 
मैंने तुम्हारे प्रेम को कुछ इस तरह महसूसा
जैसे कि माँ बच्चे के कोमल नन्हें अनछुए होंठों को
पहली बार अनचीन्हे से अंदाज में महसूसती है
 
दर्द का तनाव अपने सिरजे को छाती से लगाते ही
आह्लाद की धारा में फूट बहता है क्रमश:
 
गालों पर दूध की बुँदकियाँ लगाए नन्हें से
बच्चे से तुम
अपने विशाल कलेवर के साथ खड़े हो
मेरे सम्मुखऔर
मैं गंगोत्री की तरह फूट पड़ी हूँ ।
और कुछ अस्फुट शब्दों के
सिवाय एक अधूरे सन्नाटे के
 
उस वक़्त मैंने तुम्हारे शब्दों को अपना बना लिया
 
सुनो
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,089
edits