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प्रौढ़ा बरनन / रसलीन

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चाहत सदा ही देखो तुअ मुख चंद ही को,
भरे अनुराग सों चकोर सम आँखिए।
बिन देखे लीलत अगार बिरहानल के,
चंद्रिका सी जोति बिधि आनन की चाखिए।
थाते मते कहां जौ सुजान तुम्हैं जान अब,
आइए जो मन कछू सोई अब भाखिए।
ऐसोई उपाय कीजै आवन न भानु दीजे,
दिन दाबि दूबि लीजे रैन गये राखिए॥32॥