भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ-2 / मनीषा पांडेय

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 2 नवम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्‍यार में डूबी हुई लड़कियों से
सब डरते हैं

डरता है समाज
माँ डरती है,
पिता को नींद नहीं आती रात-भर,
भाई क्रोध से फुँफकारते हैं,
पड़ोसी दाँतों तले उँगली दबाते
रहस्‍य से पर्दा उठाते हैं...

लड़की जो तालाब थी अब तक
ठहरी हुई झील
कैसे हो गई नदी

और उससे भी बढ़कर आबशार
बाँधे नहीं बँधती
बहती ही जाती है
झर-झर-झर-झर।