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फँसी हुई लड़कियाँ / रूपम मिश्र

फँसी हुई लड़कियाँ !

उसके गाँव-जवार
और मुहल्ले का
आसाध्य और बहुछूत शब्द था ये !

कुछ लड़कियों के तथाकथित प्रेमियों ने
अपने जैसे धूर्त दोस्तों में बैठकर
बेहयाई से प्रेयसी का नाम लेते हुए कहा —
मुझसे फँसी हुई हैं ।

उसे नफ़रत थी इस शब्द से
उसने जहाँ भी सुना कि वो लड़की
किसी से फँसी हुई है
उस लड़की के लिए घृणा से उसका मन भर गया
फँसी हुई लड़कियों को देखकर लगा
कि कोई गलीज़ चीज़ देख ली

फिर एक दिन उसे अप्रत्याशित प्रेम हुआ
अब उसके सर्वांग से फूटती थी एक आदिम महक
और आँखें अड़हुल के फूलों की तरह दहकने लगीं

प्रेयस ने उसे बताया —
प्रेम आत्मा का पवित्रतम रूप है
उसने प्रेयसी को
प्रार्थना की सुरीली धुन कहा
वो मगन रही कि वो प्रेयसी है
उसे गर्व हुआ कि वो फँसी हुई लड़की नहीं है
और उसने उन फँसी हुई लड़कियों से और घृणा की

फिर एकदिन उसने सुना,
कोई कह रहा था
उसके प्रेमी का नाम लेकर
कि वो तो फलाँ व्यक्ति से फँसी हुई है

अचानक खुद के लिए ये शब्द सुनकर
घिन, अपमान, दुख और क्रोध जैसी
कितनी सम्वेदनाओं से काँप गयी वो
लगा कि क़स्बे के सबसे गन्दे नाले में ग़लती से आ गिरी
 
फिर थोड़ी देर सोचकर उसने हँसकर कहा
इतनी भी ख़राब नहीं होतीं फँसी हुई लड़कियाँ !
प्रेम के अभिज्यात्य वैभव का सौभाग्य
और समाहारक हैं ये ही फँसी हुई लड़कियाँ !