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फ़कीरों के लिए खोटी चवन्नी फेंकते रहिए / विनय कुमार

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फ़कीरों के लिए खोटी चवन्नी फेंकते रहिए।
दुआ की आँच पर अपने पराठे सेंकते रहिए।

कभी मिटती नहीं है प्यास बादल को चबाने से
कभी तो पेड़ बनकर आसमां को देखते रहिए।

अजब बरसात सहरा में, ग़ज़ल पोषाक इकलौती
इसी में भींगते रहिए, इसी में सूखते रहिए।

तड़प इंसान दिखने की मगर परहेज़ खतरों से
गधों के बीच छिपना है अगर तो रेकते रहिए।

खुदा खत है कि है कोई लिफ़ाफ़ा क्या पता किसको
खुदा के नाम पर अपने लिफाफे बेचते रहिए।

पसीने की इबारत को चमकने दीजिए तन पर
बने फिरिए न यूँ शायर, न बैठे सोचते रहिए।