फ़ख़्र मलबूस पर तू अपनी न कर ऐ मुनअम
पशम दोनों हैं, तेरी शाल हमारी लोई
शैख़ काबे में ख़ुदा को तू अबस ढूँढे है
तालिब उसका है तो हर इक की करे दिलजोई
फ़ख़्र मलबूस पर तू अपनी न कर ऐ मुनअम
पशम दोनों हैं, तेरी शाल हमारी लोई
शैख़ काबे में ख़ुदा को तू अबस ढूँढे है
तालिब उसका है तो हर इक की करे दिलजोई